Last modified on 3 मई 2011, at 22:36

फूल / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:36, 3 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध }} {{KKCatKavita}} <poem> रंग कब ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रंग कब बिगड़ सका उनका
रंग लाते दिखलाते हैं ।
मस्त हैं सदा बने रहते ।
उन्हें मुसुकाते पाते हैं ।।१।।

भले ही जियें एक ही दिन ।
पर कहा वे घबराते हैं ।
फूल हँसते ही रहते हैं ।
खिला सब उनको पाते हैं ।।२।।