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कैबत आळी कविता : एक / सुनील गज्जाणी

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सठियातौ, नितूगै तूफाण जैड़ौ रोळौ
मचावतौ घर मांय
एक दिन तू तू-मैं मैं हुयगी
एक बेटै सागै
देख सुण औ करंट सो लाग्यौ बाप नै,
अर घच्‌च सो पड़ग्यौ
उण कैबत नै साची बणावतौ
स्यांती रै पछै तूफाण मच्यौ कै
सदमै सूं बो छेकड़लो मारग लियो।