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भिखारी : एक / सुनील गज्जाणी
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कचरे की ढेरी पे,
मानो सिंहासन पे हो बैठा,
जाने किस उधेड़-बुन में,
अपने गालों पे हाथ धरे,
कचरे में पड़े एक आइने में,
अक़्स देखता अपना,
निहारता अपने को,
एक भिखारी।