भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ क्षणिकाएं / सुनील गज्जाणी
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:28, 4 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनील गज्जाणी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>1. दो बून्द, च…)
1.
दो बून्द,
चरणों में तेरे,
चढ़ा दी तो,
क्या हुआ,
आंखों का पानी
ही तो है।
2.
औरत
एक पुल
दो खानदानों के बीच।
3.
मन
मानो
कस्तूरी मृग हो।
4.
मार्ग
जीवन के भीतर,
मार्ग,
जीवन के बाहर भी।
5.
रिश्ते
सागर के भांति भी,
रिश्ते,
खडे़ के पानी ज्यूं भी।
6.
रेखाएं,
जीवन और जीवन,
के बाहर का,
खास व्याकरण।