भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन में अरमानों का / बलबीर सिंह 'रंग'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:51, 4 मई 2011 का अवतरण ("जीवन में अरमानों का / बलबीर सिंह 'रंग'" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन में अरमानों का आदान-प्रदान नहीं होता है

मैंने ऐसा मनुज न देखा
अंतर में अरमान न जिसके,
मिला देवता मुझे न कोई
शाप बने वरदान न जिसके ।
पंथी को क्या ज्ञात कि
पथ की जड़ता में चेतनता है ?
पंथी के श्रम स्वेद-कणों से पथ गतिमान नहीं होता है ।
जीवन में अरमानों का आदान-प्रदान नहीं होता है ।

यदि मेरे अरमान किसी के
उर पाहन तक पहुँच न पाए,
अचरज की कुछ बात नहीं
जो जग ने मेरे गीत न गाए ।
यह कह कर संतोष कर लिया-
करता हूँ मैं अपने उर में,
अरुण-शिखा के बिना कहीं क्या स्वर्ण-विहान नहीं होता है
जीवन में अरमानों का आदान-प्रदान नहीं होता है ।

मैं ही नहीं अकेला आकुल
मेरी भाँति दुखी जन अनगिन,
एक बार सब के जीवन में
आते गायन रोदन के क्षण,
फिर भी सब के मन का सुख-दुख एक समान नहीं होता है ।
जीवन में अरमानों का आदान-प्रदान नहीं होता है ।