भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम कहाँ हो / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 4 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' }} {{KKCatGhazal}} <poem> पधारी चाँदनी है तुम…)
पधारी चाँदनी है तुम कहाँ हो
तुम्हारी यामिनी है, तुम कहाँ हो
समस्यायें उलझती जा रही हैं
नियति उन्मादिनी है, तुम कहाँ हो
अमृत के आचमन का अर्थ ही क्या
तृषा वैरागिनी है तुम कहाँ हो
तिरोहित हो रहा गतिरोध का तम
प्रगति अनुगामिनी है, तुम कहाँ हो
तुम्हारे 'रंग' की यह रूप-रेखा
बड़ी हतभागिनी है, तुम कहाँ हो