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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 8
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राक्षस बानर संग्राम
( छंद संख्या 44, 45 )
(44) (झूलना)
मत्त-भट-मुकुट, दसकंठ-साहस-सइज,
सृंग-बिद्दरनि जनु बज्र-टाँकी।
दसन धरि धरनि चिक्करत दिग्गज, कमठु,
सेषु संकुचित, संकित पिनाकी।।
चलत महि-मेरू, उच्छलत सायर सकल,
बिकल बिधि बधिर दिसि-बिदिसि झाँकी।
रजनिचर-घरनि घर गर्भ-अर्भक स्त्रवत,
सुनत हनुमानकी हाँक बाँकी।44।
(45)
कौनकी हाँकपर चौंक चंडीसु, बिधि,
चंडकर थकित फिरि तुरग हाँके।
कौनके तेज बलसीम भट भीम-से ,
भीमता निरखि कर नयन ढ़ाँके।।
दास-तुलसीसके बिरूद बरनत बिदुष,
बीर बिरूदैत बर बैरि धाँके।
नाक नरलोक पाताल कोउ कहत किन,
कहाँ हनुमानु-से बीर बाँके।45।