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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 1

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राक्षस बानर संग्राम

( छंद संख्या 30, 31 )

(30)
  
रोष्यो रन रावनु , बोलाए बीर बानइत,
 जानत जे रीति सब संजुग समाजकी।

चली चतुरंग चमु, चपरि हने निसान,
 सेना सराहन जोग रातिचरराजकी।

तुलसी बिलोकि कपि-भालु किलकत,
ललकत लखि ज्यों कँगाल पातरी सुनाजकी।

रामरूख निरखि हरष्यो हियँ हनूमानु,
मानो खेलवार खोली सीसताज बाजकी।।

(31)
  
साजि कै सनाह -गजगाह सउछाह दल,
महाबली धाए बीर जातुधान धीरके।।

 तुलसी तमकि-ताकि भिरे भारी जुद्ध क्रु्््ुद्ध,
सेनप सराहे निज निज भट भीरके।

 रूंडनके झुंड झूमि-झूमि झुकरे-से नाचैं,
 समर सुमार सूर मारैं रघुबीरके।31।