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कुमुद बेचती बच्ची / ओएनवी कुरुप

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पुराने मंदिर के प्रांगण में
कुमुद<ref>कमल का फूल</ref> का तालाब है
रास्ते के किनारे
पूजा के सामान बेचते हैं लोग

यहाँ देवता पर
कुमुद के फूल चढ़ाए जाते हैं...
गाइड जानकारी देता है
एक कोने में खड़ा

कुछ लोग कुमुद-फूल बेच रहे हैं
जिनके लटके हुए डंठल
काले नाग-से दिखाई देते हैं

मेरे सामने
सूखे फूलों के डंठल-सी
एक छोटी बच्ची खड़ी है
’मुझसे ले लो, मुझसे ख़रीद लो...’
कहती हुई

धीमे स्वर में विनती करती है वह
उससे फूल लेकर
मैं उसे
एक छोटा सिक्का दे देता हूँ

फिर उसकी तरफ़ देखता हूँ
और उन बाक़ी फूलों की तरफ़ भी
जो उसने अपने हाथ में पकड़ रखे हैं
दोनों ही मुरझा रहे हैं

रे फूल !
तू इस बच्ची का पेट पालता है
यह पुण्य का काम है
तुझे देवता पर चढ़ाकर
भला, मैं क्या पाऊँगा... !!

मैं खाली हाथ लौट आता हूँ
उस बच्ची की आवाज़ अब कम सुनाई पड़ती है
मेरे हाथों से मेरा फूल...

यहाँ की मिटटी में
धंसी हुई है क्या
स्वर्गिक ख़ुशी
अभी तक नहीं मिली है जो
 
जब थककर
मैं लौट आया वहाँ से
तो दीया बुझ गया
वहाँ पड़े रह गए बस सफ़ेद फूल
और कुमुद बेचती वह बच्ची

मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स

शब्दार्थ
<references/>