भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजा नीं देखै / नीरज दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नीरज दइया |संग्रह=साख / नीरज दइया }} [[Category:मूल राजस्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भायला, कैड़ी नाजोगी बात है-
मुगती री चावना मांय
बैठ्‌या चींतां आपां सगळा
कै बीजां री कतर दां पांख्यां
अर धणियाप ला- ओ आभो!

लुगाई नै सांकळा पैरा परा
का गवाळियै दांई
बांध परी खंभै सूं
रात-रात मांय
नीं बणा सकां सावतरी।

कै पंचतंत्र री खातण दांई
जाणै हणै ई सावतरी-
अड़ी बगत मांय आडा आवै गुर
खसमां नै पोमावण रा
कै इण देस मांय
राजा नीं देखै-
नकटाई!