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राम-नाम-महिमा / तुलसीदास/ पृष्ठ 10

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राम-नाम-महिमा-9
 
 (107)

मेरें जाति -पाँति न चहौं काहूकी जाति-पाँति,
मेरे कोऊ कामको न हौं काहूके कामको ।

लोक परलोकु रघुनाथही के हाथ सब,
भारी है भरोसो तुलसीके एक नामको।

 अति ही अयाने उपखानो नहिं बूझै लोग,
‘साह ही को गोतु होत हे गुलामको।।

साध्ुा कै असाधु , कै भलो कै पोच’, सोचु कहा,
का काहूके ,द्वार परौं? जो हौं रामको।।

 (108)

कोउ कहै , करत कुसाज, दगाबाज बड़ो,
 कोऊ कहै रामको गुलामु खरो खूब है।

साधु जानैं महासाधु , खल जानैं महाखल,
बानी झूँठी-साँची कोटि उठत हबूब है।

 चहत न काहूसों न कहत काहूकी कछू ,
सबकी सहत , उर अंतर न ऊब है।

तुलसी को भलो पोच हाथ रधुनाथही के,
रामकी भगति-भूमि मेरी मति दूब है।।