भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम-नाम-महिमा/ तुलसीदास/ पृष्ठ 8

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


राम-नाम-महिमा-7
 
(103)

राजमरालके बालक पेलि कै पालत-लालत खूसरको।
सुचि सुंदर सालि सकेलि , सो बारि कै, बीजु बटोरत ऊसर को।।

गुन-ग्यान-गुमानु, भँभेरि बड़ी, कलपद्रृम्मु काटत मूसरको।।
कलिकाल बिचारू अचारू हरो, नहिं सुझै कछू धमधूसरको।।

 (104)

कीबै कहा , पढ़िबेको कहा फलु, बूझि न बेदको भेदु बिचारैं।
स्वारथको परमारथको कलि कामद रामको नामु बिसारैं। ।

बाद-बिबादु बढ़ाइ कै छाती पराई औ आपनी जारैं।
चारिहुको, छहुको, नवको, दस-आठको पाठु कुकाठु ज्यों फारैं।।