भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नारी किश्ती / नरेश मेहन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:21, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश मेहन |संग्रह=पेड़ का दुख / नरेश मेहन }} {{KKCatKavita}} <…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नारी और किश्ती में
कितनी समानता है
दोनों जूझती है लहरों से
दूसरों को किनारे पहुंचाने के लिए।
किनारे पर पहुंच कर
फिर से लौटना होता है
दूसरे किनारे पर
महज
दूसरों के सुख के लिए।
किनारों के बीच
संघर्ष कितना जटिल है
यह जानने की कोशिश
मर्द कभी नहीं करते
मगर
संघर्ष करने वाले
संघर्ष से कभी नहीं डरते।
नारी तुम एक किश्ती हो
सचमुच एक हस्ती हो।
तुम्हारे पास
देने को बहुत कुछ है
ढेर सारा प्यार
जैसे लबालब भरा हो तलाब
जिस मे तुम तैरती रहती हो
किश्ती की तरह।