भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीछे कुछ भी नहीं / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:12, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=नए घर में प्रवेश / नरेश अग्…)
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
यह जिन्दगी विभाजित है
टुकड़ों - टुकड़ों में
जबकि हम सोचते हैं, यह एक है
जो अभी जिया, वो थोड़ी देर बाद नहीं
कल नहीं, परसों नहीं, कभी नहीं
मुझे जो दिया गया है मौका प्रकृति ने
उसे आगे देखने को बढ़ाता हूँ कदम,
शेष रह जाता है कुछ भी नहीं ।