अचानक तुम्हारी याद आने लगी
तुम्हारी कोमल हथेली को
फिर से पकड़ लिया मैंने
बढ़ने लगा एक सुखद यात्रा की ओर
सारे धूल-कुहासे से ऊपर
तैरने लगा मैं
एक मधु से भरी नदी में
जिसके चारों ओर
रूई जैसे पहाड़ थे
और ओस टपक रही थी
ऊपर कोई रोक-टोक नहीं थी
न ही किसी से भय।