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समझ पकड़ियां पछै / नीरज दइया

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भाई म्हारा
थारै अर म्हारै बिचाळै
हो जद हो
हेत रो समंदर।

पण
मन रळ्यो कोनी
समझ पकड़्या पछै
म्हैं बिछावण लाग्यो
च्यारूंमेर मून।

थूं जाणै
अणूतै मून मांय
तिरणो का चालणो
हुवै- घणो अबखो।