भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माटी अर मिनख / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:51, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नीरज दइया |संग्रह=साख / नीरज दइया }} [[Category:मूल राजस्…)
माटी मिनख नै
चाइजै कित्ती’क?
स्सौ कीं हुवतां थकां ई
माटी सारू लड़ै है
माटी रा मिनख।
भटकावै है मन
जोड़ै है जुगत
माटी री माटी सूं!
माटी री बणत सूं
मन नै भटकावण मांय
बेजा ई सौरप है।
एकर चींत
मीत!
इण माटी री सौरप नै
सोच,
कै आ कांई चावै
जिण सूं घड़ीज्या हा-
थूं अर म्हैं।