भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादीजी के लिए / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:08, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=पगडंडी पर पाँव / नरेश अग्रव…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

तुम नहीं हो
फिर भी हमें लगता है
तुम यहीं कहीं हो

कभी घड़े के पानी की तरह
उतरती हो हमारे गले में
कभी अन्न का स्वाद बनकर
शांत करती हो हमारी भूख

दीये की लौ की तरह
जलती हो हमारी पूजा में
फूलों की सुगन्ध बनकर
बसती हो हमारी प्रार्थना में

एक आभास की तरह
जिन्दा हो हमारे रग-रग में
हवा की तरह मौजूद हो
हमारे हर दु:ख- सुख में

तुम यहीं कहीं
बसी हुई हो हमारे दिल में
जैसे मौजूद थे हम कभी
तुम्हारी कोख में ।