प्रभुकी महत्ता और दयालुता / तुलसीदास/ पृष्ठ 8
सीतावट-वर्णन 
( छंद 138 से 140 तक)		 	
(138)
जहाँ बालमीकि भए ब्याधतें मुनिंदु साधु, 
‘मरा मरा’  जपें सिख सुनि रिषि सातकी। 
 सीयको निवास , लव-कुसको जनमथल,
 तुलसी छुवत छाँह ताप गरै गातकी।। 
बिटपमहीप सुरसरित समीप सोहै, 
सीताबटु पेखत पुनीत  होत पातकी। 
बारिपुर दिगपुर बीच बिलसति भूमि,
 अंकित जो जानकी-चरन -जलजातकी।।
(139) 
मरकतबरन परन, फल मानिक-से, 
लसै जटाजूट जनु रूखबेष हरू है। 
सुषमाको ढेरू कैधौं  सुकृत -सुमेरू कैंधौं ,
 संपदा सकल मुद-मंगलको घरू है।। 
देत अभिमत जो समेत प्रीति सेइये,
 प्रतीति मानि तुलसी, बिचारि काको थरू है।
 सुरसरि निकट सुहावनी अवनि सोहै, 
रामरवनीको बटु कलि कामतरू है।।
(140)
देवधुनि पास, मुनिबासु , श्रीनिवासु जहाँ  ,
 प्राकृतहूँ  बट-बूट बसत पुरारि हैं।
 जोग-जप-जागको, बिरागको पुनीत पीठु, 
 रागिन पै सीठि डीठि बाहरी निहारि है।
 ‘आयसु’ , ‘आदेस’, ‘बाबू’, भलो-भलो भावसिद्ध,
 तुलसी बिचारि जोगी कहत  पुकारि हैं। 
राम-भगतनको तौ कामतरूतें अधिक, 
सियबटु सेयें करतल फल चारि हैं।।
	
	