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प्रभुकी महत्ता और दयालुता / तुलसीदास/ पृष्ठ 10
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तीर्थराजसुषमा,
( छंद 144) 1
(144)
देव कहैं अपनी-अपना,
अवलोकन तीरथराजु चलो रे।
देखि मिटैं अपराध अगाध,
निमज्जत साधु -समाजु भलो रे।।
सोहै सितासित को मिलिबो,
तुलसी हुलसै हिय हेरि हलोरे ।
मानो हरे तृन चारू चरैं,
बगरे सुरधेनुके धौल कलोरे।।