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पिता के लिए प्रार्थना / नरेश अग्रवाल
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मैं प्रतिदिन तेरे द्वार पर आता रहा
और निराश होकर लौटता रहा
इस आशा में कि एक दिन
तू जरूर मेरी तरफ देखेगा
और अपने सर्वव्यापी हाथों से
मेरे ऑंसू पोंछेगा
विदा करेगा मुझे
अपना दुर्लभ प्रसाद देकर
लेकिन मेरी आशा
रोज मेरे पिता की रुगण शैया
के आस-पास दम तोड़ती रही और
तुम्हारी धरती नाराज होकर रूठी रही
उन्हें पॉंवों से खड़े होने का
सहारा तक नहीं मिला
अनगिनत दिन बीत गये
मैं ठीक से समझ भी नहीं पाया
कि तू मेरी परीक्षा ले रहा है या
यह कोई तेरा बहाना है
मुझे अपने पास बुलाने का
अगर तू मेरी प्रार्थना से
थोड़ा सा भी खुश होता है
तो यह खुशी मेरे पिता के
चेहरे पर बिखेर दे
मेरी ऑंखें तेरी इस परम अनुकम्पा से
सन्तुष्ट हो जायेंगी ।