भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीमार माँ का दर्द / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:36, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=पगडंडी पर पाँव / नरेश अग्रव…)
मॉं तुम्हारे दॉंत नहीं हैं
थोड़ा-सा शर्बत पी लो
मैंने निकाला है इसे
अपने नन्हें हाथों से
देखो इन अंगुलियों में
अभी भी टपक रही हैं
रस की दो-चार बूंदें
यह बूंद नहीं है
प्यार है मेरा मॉं
मॉं तुम थक गयी हो
पीकर इसे सो जाओ
तुम्हारी नींद से हमें
चैन मिलता है
एक सुकून मिलता है
मिलता है बहुत सारा प्यार
और आते हैं प्यारे- प्यारे सपने।