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सपना / नरेश अग्रवाल
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हर रोज
एक सपना देखती है नदी
आता है चॉंद जिसमें
तारों से भरा परिवार लेकर
रहता है देर तक
नहाता हुआ,
डुबकी लगा-लगाकर
जब तक आदमी के पॉंव
जगा नहीं देते उसे ।