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वे चिनार के पेड़ (कविता) / नरेश अग्रवाल
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वे चिनार के पेड़, एक साथ चार की संख्या में
जैसे एक परिवार और उन पर ढलते हुए सूर्य की रोशनी
अभी दूर थे हम उनसे
लेकिन कितना अधिक था
उनके पास जाने का मोह
वे काले-काले तने विशाल कद में
लदे हुए हरे-हरे पत्तों से
जैसे कई शक्तिशाली पुरुष खड़े हों एक साथ
कहीं भी देखो
आंखें फिर उनकी तरफ खिंच जाती
उनकी जड़ें बड़े गोलाकार चबूतरे सी
एक-दूसरे से मिली हुई
झील का पानी उनके समतल बहता हुआ
और सामने बादल सघन
कुहासे से सारा आकाश ढक़े हुए
हम जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहते थे इन पेड़ों तक
बैठना चाहते थे कुछ देर उनके पास
और अचानक बारिश इतनी तेज
पहुंच गयी नाव वापस दूसरे किनारे पर
सारा मोह भंग हो गया एकाएक
हम भी भींग रहे थे और साथ-साथ वे पेड़ भी
जो लग रहे थे पहले से अधिक खूबसूरत।