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आशा में / सबके लिए सुंदर आवाजें / नरेश अग्रवाल

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एक ओर उनके पास काम नहीं है
दूसरी ओर मन में बोझ, अब आगे क्या होगा
सभी की मुसीबतें एक जैसी हैं
इसलिए कोई किसी से नहीं पूछता क्या हुआ है
जिसको जितना पैसा मिलता है
वह उसे उठा लेता है, आज की मजूरी समझकर
क्योंकि बाजार गिर गया है
और पानी शायद उससे भी नीचे चला गया है,
एक लम्बा सूरज झेलने के बाद।
सभी आशा में हैं, पानी जल्दी ही वापस लौटेगा
जल्दी ही यह झील भरेगी
जल्दी ही यात्री फिर से लौटेंगे,
इसी आशा में गति देते रहते हैं
वे अपने हाथ और पैरों को,
जरा सी बारिश हुई नहीं कि
प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगते हैं आपस के लोगों में।