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बिछुड़ा हुआ दोस्त / नरेश अग्रवाल

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उसने दो ग्लास शर्बत के मंगवाये थे कमरे में
एक उसके लिए था दूसरा उसके दोस्त के लिए
दोनों जिसे एक साथ बैठे पी रहे थे
बहुत दिनों बाद आया था उसका दोस्त
जिस तरह से नजरें चुरा रहा था वह मुझसे
लगा यह फिर से जुडऩे का मामला है
आजकल वह इस दोस्त का नाम नहीं लेता था
दूसरे ही कुछ नाम, जुबान पर लौट-लौट कर आते थे
वह बेहद घनिष्ठ था एक जमाने में, इसका
जहां भी जाते थे एक ही स्कूटर में सवार होकर
एक दिन सब कुछ बदल गया
अब उसकी चर्चा से भी घबराता था वह
आज उसे सीढिय़ों से ऊपर जाते देख आश्चर्य हुआ
दोनों की वार्ता के स्तर वे ही जानें
मैं उसके पीछे-पीछे भी नहीं गया
दूसरे दिन फिर वह उसे लेने आया था
कहीं बाहर की सैर करने
मैंने उसे थोड़ा सा शक भरी नजरों से देखा
लेकिन यह सब मेरे बेटे को अच्छा नहीं लगा
वह चाहता था इस बारे में उससे अधिक कुछ भी पूछा न जाए
वे दोस्त थे और दोस्त ही रहेंगे