भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक शाम / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:15, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=वे चिनार के पेड़ / नरेश अग्…)
यह शाम का मौसम है
सभी चीजें अलग – अलग रूप से दिखाई देती हुई
सामने बोट हाउस की लंबी कतारें
उनमें रहने का सुख जैसे हम इस झील के साथ हैं
और इस झील में शायद पचासों नावें होंगी
सैलानियों को सुखद अनुभूतियाँ दिलाती हुईं
हर पल शाम जैसे हाथ छुड़ा रही हो हम लोगों से
तब तक हम थोड़ी दूरी और तय कर लेते थे
देखता हूँ ये सारे दृश्य गर्व से भरे हुए
उनमें ताकत है हमें सुख देने की
बस हमें उन्हें समर्पित करना भर है अपने आपको