भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे जानते हैं / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:18, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=वे चिनार के पेड़ / नरेश अग्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसों से वही पहनावा
वही चाल-ढाल
एक ही लय।
गुजरना सिर्फ जाने-पहचाने रास्तों से
उतरना और चढ़ना पहाड़ों पर
और हँसी भी छोटी सी
उनकी छोटी सी दुनिया की तरह।
वे जानते हैं
उनके चारों ओर खूबसूरत जगह है
वे भी इस खूबसूरती का एक हिस्सा हैं
लेकिन कभी दूर तक टहलने नहीं निकलते
न ही कभी बहुत दूर गए अपनी जगह को छोड़कर।
जो पहाड़ियों में बसे हैं उन्हें झीलें बुलाती हैं
और जो झील में उन्हें बगीचे।
सुन्दर पेड़ों की तरह इनकी जिन्दगी
पत्ते हिलने भर जितनी दौड़
फिर भी सुखद आत्मा हैं वे
तृप्त सारे आकाश को देखकर