एक यात्री / नरेश अग्रवाल
शायद थोड़ा-थोड़ा करके
सबको जान सकते हैं हम
उनकी तस्वीरों से वहाँ की धरती का अंदाजा लगा सकते हैं
फिर उनमें से सबसे खूबसूरत को चुन सकते हैं
और कर सकते हैं वहाँ की सैर।
इस तरह घूमना भी मनपसंद अजादी है
बस लगता है हरी घास पर बढ़ते जा रहे हैं
और उम्मीद है जो सामने धरती के शिथिल टुकड़े हैं
उन पर भी फूल खिलेंगे एक न एक दिन
हम बढ़ते हैं तो कितनी सारी दूरियों को
साथ बाँध कर चलते हैं
कोई परवाह नहीं जंगल में शेर मिले या न मिले
पक्षियों की उड़ान तो देख ली
और अनेक बार ये छोटी-छोटी झीलें भी
समुन्दर से अधिक प्यारी लगती हैं ।
बच्चों की तरह उत्साह मन के भीतर
बस बादलों को किसी तरह हाथ से छू ले
या गोले बनाकर खेलते रहें बर्फ से।
तिनके भी यहाँ जरूरत की चीज
थोड़ी देर इन्हें जलाकर ताप सकते हैं हम
फिर तो निद्रा में
और ताजगी सुबह की
दिखलाती है हमें राह फिर से किसी नये प्रदेश की।