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फूलों से नदी नाव / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
वो रंग-बिरंगे फूलों से लदी हुई नाव
सामने से गुजर रही थी
उसके नाविक ने हमें देखा तक नहीं
हम अपनी दुनिया में मग्न
नहीं थे इन फूलों के खरीददार
और वो ले जा रहा था इन्हें बेचने
या सजाने किन्हीं बंगलों में
यह नाव नहीं थी कोई साधारण
लग रही थी फूलों का एक गुलदस्ता
जो धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ
कुछ देर जो हमारे बगल में सज कर रहा
अब सारी झील के बीच से गुजरता हुआ
उसके नाविक की सफेद वेषभूषा
बादल भी आज वैसे ही घने सफेद
जिनकी छाया का लिबास पहने झील
और झील की मेज पर रखे हुए ये फूल
जैसे हम मिट्टी पर नहीं पानी के घर में हों।