भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सामने वाले पहाड़ों पर / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=वे चिनार के पेड़ / नरेश अग्…)
इन सामने वाले पहाड़ों में कोई हरियाली नहीं है
सारे हरे-भरे पहाड़ों के बीच कुछ अलग से लगते हैं ये
इनमें अधिक समय तक बर्फ टिकी रहती है
उस वक्त हरियाली के बीच
चाँदी के जेवरों की तरह नजर आते हैं ये
गर्मी आने पर इसका सारा पानी झील में उतर जाता है
और वे काले पत्थरों की तरह नजर आते हैं
कुहासे के वक्त इनका कालापन और सफेदी बादलो की
एक नयी तरह की भावभंगिमा व्यक्त करती है
जैसे बर्फ नहीं तो क्या हुआ
कुहासे ही तन को ढके हुए
मैं सिकारे में सैर करते हुए इन्हें देखता हूँ
उस वक्त हरियाली से भी अधिक खूबसूरत ये।