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सामने वाले पहाड़ों पर / नरेश अग्रवाल

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इन सामने वाले पहाड़ों में कोई हरियाली नहीं है
सारे हरे-भरे पहाड़ों के बीच कुछ अलग से लगते हैं ये
इनमें अधिक समय तक बर्फ टिकी रहती है
उस वक्त हरियाली के बीच
चाँदी के जेवरों की तरह नजर आते हैं ये
गर्मी आने पर इसका सारा पानी झील में उतर जाता है
और वे काले पत्थरों की तरह नजर आते हैं
कुहासे के वक्त इनका कालापन और सफेदी बादलो की
एक नयी तरह की भावभंगिमा व्यक्त करती है
जैसे बर्फ नहीं तो क्या हुआ
कुहासे ही तन को ढके हुए
मैं सिकारे में सैर करते हुए इन्हें देखता हूँ
उस वक्त हरियाली से भी अधिक खूबसूरत ये।