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हाथ / नरेश अग्रवाल
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सभी संसर्ग जुड़ नहीं पाते
अगर ऐसा हो तो फिर ये अंगुलियां
अपना काम कैसे करेंगी।
मैं कभी-कभी मोहित हो जाता हूं
आटा गूंधने की कला पर
जब सब कुछ एक साथ हो जाता है
जैसे सब कुछ एक में मिल गया हो
लेकिन आग उन्हें फिर से अलग करती है
हर रोटी का अपना स्वरूप
प्रत्येक के लिए अलग-अलग स्वाद।
मैं अजनबी नहीं हूं किसी से
जिससे थोड़ी सी बात की वे मित्र हो गए
और मित्रता अपने आप खींच लेती है सबों को
दो हाथ टकराते हैं जीत के बाद
दोनों का अपना बल
और सब कुछ खुशी में परिवर्तित हो जाता है