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जो मिला है मुझे / नरेश अग्रवाल
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उपदेश कभी खत्म नहीं होंगे
वे दीवारों से जड़े हुए
मुझे हमेशा निहारते रहेंगे,
जब मुझमें अपने को बदलने की जरूरत थी
उस वक्त उन्हें मैं पढ़ता चला गया
बाकी समय बाकी चीजों के पीछे भागता रहा,
अत्यधिक प्रयत्न करने के बाद भी
थकता नहीं हूं
कुछ न कुछ हासिल करने की चाह।
जो मिला है मुझे
जिससे सम्मानित महसूस करता हूं
गिरा देता हूं सारी चीजों को एक दिन
अपने दर्पण में फिर से अपनी शक्ल देखता हूं
बस इतना काफी नहीं है
इन बिखरी चीजों को भी सजा कर रखना है
वे सुन्दर-सुन्दर किताबें
वे यश की प्राप्ति के प्रतीक
कल सभी के लिए होंगे
और मैं अकेला नहीं हूं कभी भी।