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मेरा अतीत / नरेश अग्रवाल
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ये फूल सिर्फ एक दिन में नहीं मुर्झाते
धीरे-धीरे मुर्झाते हैं,
कितनी ही रातें बीतने के बाद
और वो एक दिन समझ गया था
अब पहले जैसा वो नहीं रहा
वह इतना कमजोर
कि दूसरे सब उस पर हावी
कहीं घोड़ों के हिनहिनाने की पुकार
तो कहीं जीते हुए योद्धा
चमकदार तलवारें लेकर आगे बढ़ते हुए।
सुना था उसने
अधिक पानी हो तो होली का रंग फीका हो जाता है
और कितने सारे दुखों की आड़ से
झांकता है वह सबको,
अब एक धमक नहीं उसके पास चूहों तक को भगाने के लिए
जरा सी हो-हो की आवाज से खुद ही डर जाता है
कहा था उस दिन उसने हम सब से
तुम मेरा अंत देख रहे हों न
कोई दुख नहीं न तुम्हें
मेरा अतीत लेकिन बहुत सुंदर था
उसे देखा होता तो दुखी जरूर होते तुम।