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जानकी -मंगल/ तुलसीदास / पृष्ठ 3

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।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 3)

स्वयंवर की तैयारी-1


 ( जानकी -मंगल पृष्ठ 3)
रूप सील बय बंस बिरूद बल दल भये।
 मनहुँ पुरंदर निकर उतरि अवनिहिं चले।9।

 दानव देव निसाचर किंनर अहिगन ।
 सुनि धरि -धरि नृप बेष चले प्रमुदित मन।10।

एक चलहिं एक बीच एक पुर पैठहिं।
एक धरहिं धनु धाय नाइ सिरू बैठहीं।11।

 रंग भूमि पुर कौतुक एक निहारहिं ।
ललकि सुभाहिं नयन मन फेरि न पावहिं।12।

जनकहिं एक सिहाहिं देखि सनमानत।
बाहर भीतर भीर न बनै बखानत।13।

गान निसान कोलाहल कौतुक जहँ तहँ
सीय-बिबाह उछाह जाइ कहि का पहँ।14।

गाधि सुवन तेहिं अवसर अवध सिधायउ।
 नृपति कीन्ह सनमान भवन लै आयउ।15 ।

पूजि पहुनई कीन्ह पाइ प्रिय पाहुन।
कहेउ भूप मोहि सरिस सुकृत किए काहु न।16।

(छंद2)

काहूँ न कीन्हेउ सुकृत सुनि मुनि मुदित नृपहि बखानहीं।
महिपाल मुनि केा मिलन सुख महिपाल मुनि मन जानहीं।।

अनुराग भाग सोहाग सील सरूप बहु भूषन भरीं।
 हिय हरषि सुतन्ह समेत रानीं आइ रिषि पायनह परीं।2।


(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 3)