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मुंसिफ़ ही हमको लूट गया / मुकुल सरल

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दिल तो टूटा है बारहा लेकिन
एक भरोसा था वो भी टूट गया
किससे शिकवा करें, शिकायत हम
जबकि मुंसिफ़ ही हमको लूट गया

ज़लज़ला याद दिसंबर का हमें
गिर पड़े थे जम्हूरियत के सुतून
इंतज़ामिया, एसेंबली सब कुछ
फिर भी बाक़ी था अदलिया का सुकून

छह दिसंबर का ग़िला है लेकिन
ये सितंबर तो चारागर था मगर
ऐसा सैलाब लेके आया उफ़!
डूबा सच और यक़ीं, न्याय का घर

उस दिसंबर में चीख़ निकली थी
आह ! ने आज तक सोने न दिया
ये सितंबर तो सितमगर निकला
इस सितंबर ने तो रोने न दिया