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"आकाशे दामामा बाजे... / शमशेर बहादुर सिंह

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गर्दन झुकाए
एकटक कुछ देखते,सोचते,
निश्चय
        ओ विद्रोही
--क्या देखते, जाने क्या सोचते
स्वतः अनजाने ही
तीन देशों के एक साथ नागरिक
तीन देशों की विप्लवी
     एकता में
     कहीं
     चित्त बसाए
...हमारे लिए तीन
जो तुम्हारे लिए एक...
मौन शांत दृष्टि से
क्या अवलोकन करते
कौनसी कविता लिखते
किस नए कॉस्मिक विद्रोह और
                       निर्माण की !
"...आकाशे दामामा बाजे..."
     विद्रोही !
क्या अब भी दामामे बज रहे हैं
--और किस आकाश में
किन-किन धरतियों के ऊपर
     मानव-हृदयों में
               दामामे बज रहे हैं ?!
"चल ! चल ! चल !" शुन, शुन,
                            शुन !
वह शोकगीत के दामामे हैं शायद :
मगर उनकी चोट कैसी कड़ी है
           विद्रोही !
न, न, न,
वो शोकगीत के न होंगे,
विजय के ही होंगे निरन्तर
                     सदा की तरह !
क्यों तुम बोल न उठे
      यकायक कभी ?
इतना कुछ हो गया
      दुनिया में
हीरोशिमा नागासाकी ही नहीं
पूरा वियतनाम
पूरा चीन
पूरा अफ़्रीका
पूरी अरब दुनिया
--ये सब
मानव चेतना के इतिहास में
                    व्याप्त हो गया :
हम अपनी साँस में
इन सबको जीते हैं
...और तुम ?!
युद्ध समाप्त हुआ
जिसमें से और
       भीषणतर युद्ध
       आरम्भ हुए;
पश्चिम का दानवी रूप