भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जानकी -मंगल/ तुलसीदास / पृष्ठ 16

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:52, 15 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=ज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 16)
 
विवाह की तैयारी-1

 ( छंद 113 से 120 तक)

 गुनि गन बोलि कहेउ नृप माँडव छावन।
गावहिं गीत सुआसिनि बाज बधावन।113।

 सीय गीत हित पूजहिं गौरि गनेसहि।
परिजन पुरजन सहित प्रमोद नरेसहि।।

प्रथम हरदि बंदन करि मंगल गावहिं
करि कुल रीति कलम थपि तुलु चढ़ावहिं।।

 गे मुनि अवध बिलोकि सुसरित नहायउ।
सतानंद सत कोटि नाम फल पायउ।।

नृप सुनि आगे आइ पूजि सनमानेउ।
दीन्हि लगन कहि कुसल राउ हरषानेउ।।

 सुनि पुर भयउ अनंद बधाव बजावहिं।
सजहिं सुमंगल कलम बितान बनावहिं।।

राउ छाँड़ि सब काज साज सब साजहिं।
 चलेउ बरात बनाइ पूजि गनराजहिं।।

बाजहिं ढोल निसान सगुन सुभ पाइन्हि।
 सि नैहर जनकौर नगर नियराइन्हि।120।

(छंद-15 )


नियरानि नगर बरात हरषी लेन अगवानी गए।
देखत परस्पर मिलत मानत प्रेम परिपूरन भए। ।

आनंदपुर कौतुक कोलाहल बनत सो बरनत कहाँ।
लै दियो तहँ जनवास सलि सुपास नित नूतन जहाँ।15।

(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 16)

अगला भाग >>