भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल में साईकिलिंग / रित्सुको कवाबाता
Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:48, 15 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रित्सुको कवाबाता }} Category:जापानी भाषा <poem> मुझे …)
|
मुझे भाता है साइकिल चलाना सुनहरे दिन में
चलाते हुए साइकिल तेजी से
मेरी आँखें जैसे हों एंटीना .
मैं मारती हूँ पैडल ताबड़तोड़
पूरे जोशोखरोश से
एल्म वृक्षों की कतार जाती है पीछे छूट!
पास आते ही हरे मैदान के
हो जाती हूँ धीमे, लेने विश्राम.
क्या धकेल रहा है मुझे ?
यह हवा है ..
महसूस करती हूँ हवा अपने पीछे .
मुझे भाता है साइकिल चलाना
किसी सुनहरे दिन में
बैठना मैदान में .
पोंछते हुए बहता पसीना .
उसी पल
एक जेट गरजता है ऊपर
छोड़ते हुए पीछे सफ़ेद लकीर
नीले आकाश में .
काश मैं चला पाती साइकिल आकाश में
बैठकर साइकिल पर गुजरती आकाश से
कैसे दिखेंगे बादल जो उमड़ेंगे
गहरे नीले आकाश में ?
अनुवादक: मंजुला सक्सेना