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इसी पृथ्वी पर / शरद रंजन शरद
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इसी पृथ्वी पर इतने सारे जीव आदमी पशु-पक्षी कीट-पतंग जीवन के ढेर सारे रंग
पृथ्वी पर ही पहाड़ पानी आग उसकी मिट्टी और आकाश
इसी पर बारिश में जैसे छाता ताने हुए ग्रह नक्षत्र
बिखरी आकाशगंगा घेरता अनन्त यहीं पुण्य और पाप जन्म इसी पर यहीं अवसान
इसी धरणी को सिर आँखों पर बिठाये शेषनाग अगोरे दिकपाल गिरे नहीं फिर भी झुके नहीं इसका माथ थामे हुए इसको गर्भ से ही अनवरत मेरे दो हाथ।