मेरे कोठार में, दन्त में विष भरे
हमले की तैयारी में पूँछ पर उठकर लहरा रहा है
पकड़ने जाओ तो डसने के लिए फुफकारता है ।
कुछ कहना चाहूँ तो, सुना है उसे सुनाई नहीं देता ।
नींद में उसकी फुसफुसाहट सुनता हूँ
देखता हूँ -- हरा-नीला वर्ण उसका चौड़ा-फन
हाथ जहाँ डालता हूँ --
काग़ज़ की तरह निकल आता है वो ।