Last modified on 17 मई 2011, at 01:28

इस लोकतंत्र में / समीर बरन नन्दी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:28, 17 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=समीर बरन नन्दी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> बेहुला ! सती ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बेहुला !
सती बेहुला  !!

पुराना अँधेरा नए झंझावात में
जीवन सागर की छाती पर
केले की भेरी में एकाकीपन
की इतनी लम्बी डगर पर

हम भी --
तुम्हारी ही तरह -- तप्त ।