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तल्ख़ी-ए-हयात / रेशमा हिंगोरानी

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यूँ रौशनी से बदगुमान न हो,
तू अंधेरों से छला जाएगा,
ये साया दो-पहर का साथी है,
रात होते ही चला जाएगा!

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आगोशे-शब में जो सुकून मय्यसर था हमें,
उजालों को सुबह के, वो भी गवारा न हुआ!

(आगोशे-शब - रात की गोद में; सुकून - आराम; मयस्सर - हासिल)

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(तल्ख़ी-ए-हयात - जिंदगी की कटुता / कड़वाहट)