Last modified on 18 मई 2011, at 18:52

मेरे मेहबूब चल / रेशमा हिंगोरानी

Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:52, 18 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} '''एक कव्वाली''' <poem> …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक कव्वाली

मेरे मेहबूब चल निकल पड़ें दुनिया से कहीं दूर...
अक्ल औ’ दिल ने सुनी कब है दूसरों की कही?
हुई सदियाँ,
वो लड़ रहे हैं अब भी जँग वही!
अक्ल समझाती रहे,
दिल को मनाती रहे,
कहाँ पर माने है दिल?
हकीक़त जाने है दिल!
न ज़माने की सुनी,
वो तो अपनी ही करे!
अक्ल सोती हो,
तब ही दिल ये जागना चाहे,
तोड़ हर दुनियवी बंधन
ये भागना चाहे!
मेरे महबूब चल निकल पड़ें दुनिया से कहीं दूर...