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मेरा देश दो चित्र (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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मेरा देश दो चित्र (कविता का अंश)
 
नगरों में, ग्रामों में चारों ओर खडे थे
क्षीण युवक, छायाओं में छिपते प्रंतों से।
यही देश है मेरा, मैने पूछा रोकर
ळां हां हां , यही यही, बोला कोई हंस-हंस कर।
(लखनऊ से लौटकर गुंजन कविता से )