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सूखा पत्ता / नवनीत पाण्डे

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किस काल के
न जाने किस काल में
वह हवा
उड़ा के ले आई मुझे यहां
सूखा पत्ता
हां! मैं एक सूखा पत्ता
छोड़ आया पीछे
बहुत-बहुत पीछे
अपने, अपनेपन की
हरी होती डालियां
नहीं देख पाया
न ही देख पाया
वे हरी डालियां, हरी-हरी डालियां
आगत के गहन गर्त में
या शिखर पर
क्या है? क्या होगा?
नहीं देख पाऊंगा
न ही देख पाऊंगा
मैं जब हरा था
मुझे भी क्या देखा होगा किसी ने?