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नंगापन / नवनीत पाण्डे

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संभोग
कितनी सुंदर
शाब्दिक अभिव्यंजना से संवारा है तुमने
मेरी उत्पीड़ा को
मैं हूं भोग
केवल भोग
जिसे हमेशा, जब जी चाहा
अपने ही तरीके से भोगा है तुमने
गर्दन तक ढकी होने के पर भी
ढूंढते-बताते रहते हो
मेरी देह का भूगोल
कहां?कहां? क्या है? कैसा है?
तुम बिड़द बांचते आए हो
तुरंत बता देते हो
क्षमा करना!
मुझसे मत पूछना!
बता नहीं पाऊंगी
तुम नंगे कैसे दिखते हो..