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तुम्हारा आसमान / नवनीत पाण्डे

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बहुत छोटा है तुम्हारा आसमान
मेरी आकांक्षाओं-इच्छाओं से
भले ही घिरे हैं
घोर अपवादों और उपहासों से
मेरे लक्ष्य और सिध्दांत
पर अब तो-
करने ही होंगे स्वीकार
तुम्हें मेरे व्यवहार
मेरे विचार
हां!
मैं अभी भी उसी पहली सीढी पर खड़ा
तुम्हें पुकार रहा हूं
जिसे तुम्हीं अब दे रहे हो
सर्वोच्च की संञा