भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन हरा है / नवनीत पाण्डे

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:29, 21 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवनीत पाण्डे |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem>हवा-प्रकाश-पान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा-प्रकाश-पानी
सब कुछ तो मिला
फ़िर भी हरा
नहीं रहा- हरा
पड़ गया पीला
जड़ हो गई जड़
नहीं
मुझे नहीं स्वीकार
हार
मैं दूंगा
अपनी आंखों का पानी
सांसों की हवा
अस्तित्त्व का प्रकाश
जीतेगा विश्वास
जीवन हरा है
न कभी मरता है
न कभी मरा है